प्रस्तुतिः कुुसुम सोनी(उत्तराखण्डी) मोदीनगर।
मोदीनगर। उत्तराखण्ड के पारंपरिक लोक उत्सवों में मकर संक्रांति के दिन मनाऐ जाने वाले उत्तरैणी व मकरैणी का प्रमुख महत्व है। गढ़वाल क्षेत्र में मकर संक्रांति को मकरैणी के रूप में मनाया जाता है। कुमाऊं क्षेत्र में मकर संक्रांति को उत्तरैणी या घुघतिया त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।
मकर संक्रांति से सूर्य के उत्तरायण की ओर आने की वजह से इस दिन को उत्तरैणी के नाम से मनाया जाता है। कुंमाऊ में मकर संक्रोति के प्रथम दिन रातभर महिलाऐं व पुरूष जागरण करते है, ओर तरह के व्यंजन बनाते है। प्रातः उठकर पवित्र नदी में स्नान कर भगवान विष्णु की आराधना की जाती है, ओर अपने बड़े का आर्शीवाद प्राप्त कर उनको मिष्ठान का सेवन कराते है। इस विशेष अवसर पर बागेश्वर में सरयू नदी में स्नान करने का प्रयाग में स्नान करने जितना पवित्र माना जाता है। इस अवसर पर बागेश्वर में विश्व का प्रसिद्व उत्तरैणी मेला भी लगता है।
इस त्यौहार के पीछे विभिन्न पौराणिक कथायें है, जैसे कुंमाऊं में चंदराजा कल्याण चंद की कोई संतान न थी, निसंतान राजा व रानी दुखी रहते थे, ओर राजा का मंत्री यह सोचता था कि राजा का कोई उत्तराधिकारी न होने के कारण राज्य उसे मिल जायेंगा। एक दिन राजा व रानी बागेश्वर में बागनाथ मंदिर गये ओर उन्होंने भगवान शिव से संतान का सुख मांगा। भगवान शिव के आर्शीवाद से उनके घर एक बालक ने जन्म लिया। राजा रानी उसे घुघति पुकारते थे। रानी उसे एक मोती की माला पहनायें रखती थीं बालक को वह माला इतनी पंसद थी, कि वह उसको अपने से अलग नही होने देता था। जब बालक कहना नही मानता था तो उसकी मां पुकारती थी, कि काले कौवा काले घुघुति माला खालंे। एक दिन सत्ता के लालच में राजा का मंत्री राजकुमार घुघुति को मारने के उद्देश्य से सुनसान जंगल में ले गया। मंत्री का यह कार्य देख कोआ उस मंत्री पीछे पीछे उड़ने लगा कौवे ने अपनी आवाज से ओर भी कौवों को बुलाकर राज कुमार घुूघुति को मंत्री चंगुल से छुड़ाने का प्रयास किया। इस बीच राजकुमार के गले की माला टूटकर जमीन पर गिर गई। कौवा ने माला उठाई ओर राज महल ले गया। बाकी कौओं ने चोच से मंत्री पर आक्रमण कर दिया। जिससे मंत्री को राजकुमार को छोड़कर भागना पड़ा। माला ले जाने वाले कौवे ने राज महल जाकर सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, ओर उड़कर वापस जंगल की ओर इशारा करने लगा। राजा ओर रानी सेना सहित भागते हुये उसके पीछेे गये ओर वह राजकुमार घुघुति को पाकर प्रसन्न हुए। तभी से यह बात पुरे कंमाऊ में फैल गई ओर राजा के आदेश पर इस दिन यह त्यौहार मनाया जाने लगा। एक दूसरा मत यह भी है कि बहुत पहले यहंा कोई घुघुति नाम का राजा था। उसकी मृत्यु उत्तरायणी के दिन कौओं के द्वारा बताई गई थी। उत्तरायणी के दिन उसकी मृत्यृ टालने के लिये यह उपाए किया गया था, कि उत्तराणी के दिन से ही कौओं को घुघुत, पूरी आदि खिलाते हुये कौए का आहवान किया जाता है।
बागेश्वर के उत्तरायणी मेले का धार्मिक महत्व के साथ ही राजनीतिक महत्व भी रहा है। इस पर्व पर 1921 में कुंमाऊं केसरी प. बद्रीदत्त पांडे ओर उनके साथी नेताओं ने कुली बेगार प्रथा के विरूद्व आवाज उठाई थी। इन लोगों ने कुली बेगार से जुड़ी दस्तावेज नदी में बहा दिये थे। घुघुति पहाडों में पाऐ जाने वाला एक पक्षी भी होता कुमाऊं प्राप्त में यह त्यौहार खास मनाया ताजा है। असल में मंकर संक्रातिं ओर उत्त्राणी एक है ओर घुघुतियां इन से पहले पौष के माह के अंत में मनाया जाता है। घुघुतियां त्यौहार को मंकर संक्रांति भी कहा जाता है। माघ माह के प्रथम दिन सूर्य मकर रेखा से कर्क रेखा की तरफ यानि उत्तर दिशा की ओर चला जाता है। इसी वजह से मकर संक्रांति को उत्तरायणी भी कहा जाता है। सूर्य जब एक राशी से दूसरी राशि को संक्रमण करता है। उसे संक्रांति कहते है। यह संस्कृत का शब्द है।